रोक सको तो रोक लो

Last Updated 27 Jun 2016 05:34:11 AM IST

लिंग विवाद से पार पाकर और एक छोटे से गांव से निकलकर ओलंपिक का सफर तय करना दुती चंद जैसी जीवट लड़की ही कर सकती है.


दुती चंद ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया (फाइल फोटो)

भुवनेश्वर के एक छोटे से गांव में सात बहनों के बीच गरीब परिवार की दुती चंद के लिए खेलों के महाकुंभ-रियो ओलंपिक-के सौ मीटर दौड़ के लिए क्वालीफाई करना आसान नहीं था. लेकिन कहते हैं न, अगर मन में जीत का जज्बा हो और लगन के साथ लक्ष्य तय किए जाएं तो सफलता आपके कदम जरूर चूमेगी.

दुती के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. अंतरराष्ट्रीय सर्किट में वापसी के एक साल बाद इस धाविका ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर न सिर्फ अपने सपनों को नई उड़ान दी, बल्कि 125 करोड़ भारतीयों की उम्मीदें भी जगा दीं. लेकिन इन खुशियों के पीछे जो दर्द, पीड़ा और आंसू दुती ने महसूस किया, वो एक रोचक फिल्म सरीखा लगती है.

पहले ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स और फिर एशियन गेम्स से बाहर किए जाने के बावजूद दुती ने हार नहीं मानी और अपने संघर्ष की नई गाथा लिखने की ठानी. दुती को अपने पर इस कदर भरोसा था कि उसने अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स फेडरेशन के उस सलाह को भी मानने से इनकार कर दिया कि, सर्जरी और दवा-दारू से ही दुती दोबारा ट्रैक पर लौट पाएंगी. और हुआ भी दुती के अनुसार ही.

ब्राह्मणी नदी के किनारे हाड़तोड़ अभ्यास ने आज दुती को न सिर्फ ओडीसा बल्कि देश की दुलारी बेटी बना दिया है. ओलंपिक में क्वालीफाई करने के बाद दुती का यह कहना कि-एक सेकेंड में मेरे सारे दुख-दर्द छूमंतर हो गए-उसकी जीजिविषा के कैनवस को इंद्रधनुषी रंग से भर गया. दुती की कहानी कई वजहों से अलहदा दिखती है.

पहले शरीर में तय मानक से ज्यादा टेस्टोस्टेरोन पाए जाने के कारण प्रतिबंध झेलना, फिर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ना, साथ-साथ नियमित प्रैक्टिस करना और फिर विश्व की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता के क्वालीफाइंग मुकाबले के लिए खुद को मानसिक तौर पर तैयार करना कोई हंसी खेल नहीं है. यह हर किसी के लिए प्रेरणा लेने जैसी बात है.

खैर, दुती की इस जीत ने उसके अरमानों को और मजबूती दी है. ओलंपिक खेल शुरू होने में महज 45 दिन रह गए हैं. आशा है, दुती कामयाब हो और सफलता की नई इबारत लिखे.

 



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