एकला ग्रेट ब्रिटेन

Last Updated 25 Jun 2016 05:13:16 AM IST

ब्रिटेन के लोगों ने जनमत संग्रह में अपना फैसला सुना दिया है. वे यूरोपीय संघ मे नहीं रहना चाहते. प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की मेहनत कोई काम न आई.


एकला ग्रेट ब्रिटेन

उन्होंने देश का दौरा कर लोगों को समझाने का प्रयास किया कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने से फायदा ज्यादा है. पर जनता ने उनका तर्क खारिज कर दिया.

यह कैमरन के लिए निजी धक्का भी है और वे इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि कैमरन जनमत संग्रह को स्वीकारने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं हैं पर उन्होंने यह वायदा किया था कि जनमत के साथ जाएंगे.

ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलना ऐसी घटना है, जिसका भावी इतिहास पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. 28 सदस्यों वाला यह समूह विश्व का सबसे ज्यादा आर्थिक ताकत वाला समूह था. यूरोप के लोग अपने देश के लिए तो सांसदों का निर्वाचन करते ही थे, वे यूरोपीय संघ के लिए भी मतदान करते थे.

यह अपने ढंग का अनोखा समूह था जिसमें कल्पना शायद यह थी कि एक दिन सभी देशों की राष्ट्रीयता इसमें समाहित हो जाएगी. आखिर यूरो मुद्रा को ज्यादातर देश स्वीकार कर ही चुके हैं. यह सच साबित नहीं हुआ. ब्रिटेन के अलग होने के पीछे अप्रवासी समस्या से लेकर यूरोपीय संघ को हर वर्ष दी जाने वाली सदस्यता शुल्क, उनके नियमों के दबाव में अपनी व्यापार नीति न बना पाने की कसक, तथा यूरोपीय संघ के अफसरशाही से वितृष्णा आदि प्रमुख कारण है.

किंतु इन सबसे परे अपनी संस्कृति और राष्ट्रीयता के प्रति गौरवबोध तथा पहचान बनाए रखने की उद्यम आकांक्षा प्रबल रही है. आखिर ब्रिटेन पहले यूरोपीय समुदाय में भी शामिल नहीं होना चाहता था.

करीब तीन दशक बाद वह उसमें शामिल हुआ. यूरोपीय संघ और एकीकृत मुद्रा प्रणाली में शामिल होने में उसने व्यापक हिचक दिखाई और उसका भाग होकर भी यूरो की जगह अपना पॉण्ड बनाए रखा. ब्रिटेन के लोगों को लगा कि बावजूद इसके उनकी पहचान खो रही है तथा यूरोपीय संघ के दबाव के कारण न वे अप्रवासन नियम बना पा रहे हैं और न व्यापार मामले में ही पूरी तरह स्वतंत्र निर्णय कर रहे हैं. बहरहाल, इतनी बड़ी घटना का परिणाम भी बड़ा होगा.

भारत सहित दुनिया भर के शेयर बाजारों में मचा कोहराम एक परिणाम है. पॉण्ड के दाम गिरने का मतलब होगा डॉलर का मजबूत होना और हमारा रु पया और गिरेगा. इसका परिणाम हमें तेल आयात बिल में ज्यादा भुगतान के रूप में चुकाना होगा. ब्रिटेन में रहकर यूरोपीय संघ में काम करने वाली 800 भारतीय कपंनियों के सामने भी समस्या आ गई है.



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