सख्ती पर घबराहट

Last Updated 01 Jun 2016 05:42:54 AM IST

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) से अब अन्य शहरों में डीजल के वाहनों पर प्रतिबंध नहीं लगाने की अपील की है.


सख्ती पर घबराहट

गौरतलब है कि एनजीटी ने प्रमुख शहरों में प्रदूषण की अनदेखी और वाहनों की संख्या कम करने के मामले में राज्यों की लापरवाही पर कड़ा रुख  अपनाया है.

इस बाबत जानकारी तलब करते हुए कुछ राज्यों के मुख्य सचिवों के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने के निर्देश दिए हैं. खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, प. बंगाल, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु को कहा है कि अपने यहां शहरों में वायु की लगातार गिर रही गुणवत्ता को बढ़ाएं. दरअसल, सरकार फिक्रमंद है कि इस प्रकार के प्रतिबंध से वाहन उद्योग को गहरा धक्का लगेगा.

नतीजतन, अर्थव्यवस्था के पटरी से उतर जाने के हालात बन जाएंगे. इस अंदेश के चलते ही उसका कहना है कि वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर रोक लगाने से वाहन उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा. भारी उद्योग मंत्रालय ने एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार के समक्ष वायु प्रदूषण संबंधी एक मामले में दायर अपनी एक याचिका में ध्यान दिलाया है कि वाहन उद्योग का देश की अर्थव्यवस्था में महती योगदान है. यह उद्योग सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 47 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी करता है. इतना ही नहीं देश में विदेशी निवेश की दृष्टि से यह पांचवां सबसे बड़ा उद्योग है.

आज की तारीख में अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने के मद्देनजर विदेशी निवेश की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता. दरअसल, एनजीटी ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को अन्य जगहों पर लागू करने की मंशा जतलाई है. शीर्ष अदालत 2000 सीसी से अधिक क्षमता के डीजल वाहनों के पंजीकरण पर दिल्ली में प्रतिबंध लगा चुकी है. यकीनन एनजीटी का रुख सख्त है. सरकार की अपील भी व्यावहारिक का पुट लिए है, लेकिन इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि अरसे से बढ़ता प्रदूषण चिंता का सबब बन गया है.

जमीनी स्तर पर सरकारों के स्तर पर इस चिंता के प्रति लापरवाही देखी गई है. ऐसा महसूस हुआ है कि इनने हवा-पानी को साफ-सुथरा रखने की गरज से अपेक्षित प्रयास नहीं किए. यहां तक कि अदालतों के आदेश तक का मजाक बना डाला. उम्मीद की जानी चाहिए कि एनजीटी की इस प्रकार की सख्ती से बेपरवाह बनी राज्य सरकारें अपना रवैया बदलने को विवश होंगी.



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