नीट पर अध्यादेश

Last Updated 26 May 2016 05:21:22 AM IST

राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (नीट) के अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद राज्यों के लिए इससे छूट का केवल एक वर्ष का समय ही है.


नीट पर अध्यादेश

हालांकि, मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए लाए गए इस अध्यादेश के तहत निजी मेडिकल कॉलेजों को कोई रियायत नहीं दी गई है. यानी उन पर नीट के प्रावधान पूरी तरह लागू रहेंगे.

ये दोनों बिंदू अपने-आप अध्यादेश की उपादेयता को रेखांकित करते हैं. उच्चतम न्यायालय ने सरकार को नीट के तहत मेडिकल परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया था, जिसके दायरे में राज्य बोडरे के साथ ही सरकारी एवं निजी कॉलेज भी हों. दरअसल, यह बहस लंबे समय से चल रही है कि अलग-अलग राज्यों की परीक्षाएं अपने तरीके से कराने की जगह देशव्यापी एक परीक्षा कराई जाए.  उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद इसके विपक्ष में आए मतों का कोई मायने नहीं रहा.

हालांकि सरकार की ओर से स्पष्टीकरण न होने से यह अफवाह फैल गई थी कि नीट को खत्म किया जा रहा है. यानी जो अध्यादेश आ रहा है वह बस नीट को समाप्त करने के लिए है. राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश पर कानूनी राय मांगने से भी आशंकाएं और बढ़ गई थी.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रसाद नड्डा द्वारा स्पष्ट करने के बाद कि यह 1 मई से लागू हो गया है और अध्यादेश केवल राज्यों को एक वर्ष की छूट देने के लिए है, इससे जुड़ी आशंकाएं खत्म हो गई हैं. अध्यादेश के जरिए इसमें इतना बदलाव किया गया है कि जो राज्य चाहें वे इसमें शामिल हो सकते हैं और जो नहीं चाहते उन्हें अगले साल तक के लिए छूट है.

अगले शिक्षा सत्र से इसे देशभर के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अनिवार्यरूप से लागू कर दिया जाएगा. अध्यादेश लागू होने पर सरकारी मेडिकल कॉलेज स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए 2016-17 के शैक्षणिक सत्र में अपने स्तर पर प्रवेश परीक्षाएं ले सकेंगे, लेकिन इस साल दिसंबर से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए सभी परीक्षाएं नीट के तहत ही होंगी.

चूंकि राष्ट्रपति ने नीट के संदर्भ में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों से अपनी सारी आशंकाओं का निवारण किए जाने के बाद हस्ताक्षर किए हैं, तो यह मानना चाहिए कि इसमें कानूनी तौर पर कोई समस्या नहीं होगी. उच्चतम न्यायालय भी एक वर्ष की छूट को स्वीकार कर लेगा. वैसे उच्चतम न्यायालय में याचिका डालने वाले ने इसे पूरी तरह असंवैधानिक बताया है. इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिया जाना निश्चित है.



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