राहत मिलना जरूरी

Last Updated 25 May 2016 04:10:18 AM IST

मोदी सरकार के दो साल के कार्यकाल में आर्थिक सुधारों की दिशा में किए गए प्रयासों से उद्योग जगत बल्ले-बल्ले है.


राहत मिलना जरूरी

उसका मानना है कि सरकार के प्रयासों में ‘सबका साथ, सबका विकास’ विजन को मूर्ताकार करने के लिए प्रतिबद्धता दिखलाई देती है.

कहा जा रहा है कि इन  प्रयासों के चलते ही भारतीय अर्थव्यवस्था में दो साल पहले की तुलना में सुधार के साथ ही स्थिरता दिखने लगी है. वित्तीय घाटे को लक्षित दायरे में रखने और अस्थिरता को कम करने के लिए वृहद् आर्थिक प्रबंधन रणनीति की दिशा में सक्रियता दिखलाई पड़ी है.

इसके अलावा, सुगम कारोबारी माहौल बनाने, नई उद्यमिता को प्रोत्साहित करने, रिटर्न भरने की प्रक्रिया का सरलीकरण, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने के साथ ही निवेश आकषिर्त करने और कर-प्रणाली को आसान बनाने की दिशा में भी प्रयासों में तेजी आई है.

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू कराने के जोरदार प्रयास और सड़क एवं राजमार्ग, रेलवे और शहरी सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे के विकास में जिस प्रकार से मोदी सरकार फोकस कर रही है, उससे उसकी ईमानदार कोशिशों का पता चलता है. लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद आम जन को जिस तरह से महंगाई ने हलकान कर रखा है, उससे ये तमाम सफलताएं या उपलब्धियां मायने खोती लग रही हैं.

बेशक, उद्योग जगत राजग सरकार के कार्यकलाप से प्रफुल्लित है, लेकिन महंगाई को काबू में रखने के मोर्चे पर सरकार की नाकामी की आंकड़े चुगली कर रहे हैं. बीते दो साल के मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान थोक और खुदरा मुद्रास्फीति अपने निम्न स्तर पर रही, लेकिन इसके बावजूद खाद्य पदाथरे खासकर दाल और चीनी जैसी कई जिंसों के दाम अर्श पर पहुंच गए हैं.

इस दौरान कुल मिलाकर मुद्रास्फीति काबू में रही, लेकिन बारिश की कमी और जमाखोरी एवं मुनाफाखोरी के चलते दालों, आटा, चावल, चाय, चीनी, हल्दी, मिर्च, साबुन और दंतमंजन जैसी जरूरी वस्तुओं के दामों में खासा उछाल दर्ज किया गया है.

इन मदों की मासिक खरीदारी का एक सामान्य परिवार का बिल दो साल पहले जहां दो से ढाई हजार रुपये के बीच रहता था, वहीं अब यह तीन हजार रुपये के पार निकल जाता है. बहरहाल, अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन पुरसुकून अहसास कराता है, लेकिन सबसे जरूरी है कि देश के आम जन को राहत का अहसास हो. उसे महंगाई का दंश न सहना पड़े.



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