आतंक में तेजी
देश में आतंकवादी हमले में एकाएक तेजी आई है. रविवार को मणिपुर के चंदेल में घात लगाए उग्रवादियों ने छह जवानों की हत्या कर दी.
आतंक में तेजी |
पिछले साल इसी जिले में एनएससीएन (के) उग्रवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में 18 जवान मारे गए थे. एक दिन बाद सोमवार को आतंकवाद का सबसे ज्यादा दंश झेल रहे जम्मू-कश्मीर के तेंगपोरा बाईपास (श्रीनगर) में एक पुलिसकर्मी शहीद हो गया.
इससे पहले श्रीनगर के पुराने इलाके के जडीबाल क्षेत्र के आलमगिरी बाजार में इसी तरह का हमला हुआ था जिसमें दो पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे. दो दिन पहले ही आईएस में शामिल भारत के कुछ आतंकवादियों ने भारत पर हमला करने की धमकी दी है.
आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की ईमानदारी कितनी संदिग्ध है, यह हर किसी को पता है. खुद पाकिस्तान भी इस दंश से बुरी तरह त्रस्त है. भारत ने भी विश्व के हर मंच पर आतंकवाद को लेकर लचीला, सतही और लिजलिजा रुख जाहिर करने वाले देश का चेहरा सबके सामने ला दिया है. लेकिन लाख टके का सवाल यही कि आखिर कब तक हम अपने अफसरों, जवानों और नागरिकों की जान गंवाते रहेंगे.
हर सरकार ने आतंकवाद पर शेरों जैसी दहाड़ तो निकाली लेकिन किया कुछ भी नहीं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह चुनौती इसलिए बड़ी है क्योंकि जब भाजपा विपक्ष में थी तब आतंकवाद के खात्मे को लेकर बयानबाजी करते नहीं थकती थी. अब उन्हें नासूर बन चुके इस घाव को जड़ से खत्म करने के लिए शिद्दत से लगना होगा. घाटी में इस साल अब तक 12 बड़े धमाके हुए जिनमें दो नागरिकों के अलावा नौ सुरक्षाबल शहीद हुए.
हालांकि, सुरक्षा बलों ने 39 आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया. सिफ पांच महीने में आतंक की इन वारदात से स्पष्ट है कि भारत के दुश्मन देश किस कदर हमारे पीछे पड़े हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि उनके देश में आतंकवाद का विषैला पौधा कितना व्यापक हो चुका है. अमेरिका को इस मसले पर संजीजगी से विचार करने की जरूरत है कि वो बाकी देश जो उसी की तरह आतंकवाद की जहर पी रहे हैं, कैसे शांति स्थापित करें?
यह यूरोप समेत रूस और उन देशों के लिए भी कम चुनौती भरा रास्ता नहीं है. अमेरिका, ब्रुसेल्स के अलावा फ्रांस व अन्य यूरोपीय राष्ट्र के दौरे में भी मोदी ने आतंक पर लगाम लगाने की अपील की थी. स्पष्ट है कि जिस एक बात ने भारत को काफी पीछे कर दिया, उसे नेस्तनाबूद करना निहायत जरूरी है.
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