अब तो कार्रवाई हो
यह तो राज्य सभा में कांग्रेस की दलील से भी स्पष्ट है कि अगस्ता वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में घूस का लेन-देन हुआ है और उसने ही पहले इसके खिलाफ जांच बैठाई, जो अभी तक खास आगे नहीं बढ़ पाई है.
अब तो कार्रवाई हो |
अगर इतालवी अदालत के फैसले में यहां के खासकर राजनैतिक नेताओं का जिक्र नहीं होता तो एनडीए सरकार की भी उसे आगे बढ़ाने में खास रुचि नहीं दिख रही थी.
इसलिए कांग्रेस अगर कह रही है कि घोटाले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जल्दी से जल्दी सीबीआई जांच हो तो उससे सरकार के मुकरने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए.
राज्य सभा में संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू की यह दलील उतनी मजबूत नहीं कही जाएगी कि कांग्रेस या यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच नहीं की तो हमसे ऐसा करने को क्यों कहा जाए.
लेकिन रक्षा मंत्री मनोहर परिर्कर की दलीलों से लगता है कि सरकार की रुचि सबूतों पर जल्दी कार्रवाई करने की नहीं, बल्कि संकेतों को दूर तक ले जाने में है. परिर्कर ने अपने भाषण में जायज संकेतों की ओर इशारा किया कि कैसे अदृश्य हाथों ने जांच भी धीमी करवाई होगी और कैसे अगस्ता कंपनी पर प्रतिबंध लगाने के लिए अदालतों और अपील जैसी दूर की राह अपनाई.
हालांकि कांग्रेस का आरोप है कि एनडीए सरकार ने भी उस पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाया है और वह मेक इन इंडिया के कार्यक्रमों में भागीदारी करती रही है. ये दोनों ही तरह की दलीलें सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की ही ओर ले जा रही हैं. लेकिन सिर्फ आरोप या संकेतों भर से बात नहीं बनती.
इतालवी अपीली अदालत, जो हमारे हाईकोर्ट के समान है, के करीब 250 पन्नों के फैसले में सोनिया गांधी का नाम चार बार आया है या अहमद पटेल का नाम कुछ अधिक बार आया है. लेकिन उससे यह नहीं पता चलता कि वे लेन-देन में शामिल हैं. फैसला देने वाले जज भी एक टीवी साक्षात्कार में कह चुके हैं कि उन पर कोई आरोप नहीं है.
इसी तरह, एक बिचौलिए के हाथ से लिखे एक पन्ने में कांग्रेस नेताओं के नाम हैं. लेकिन ऐसे सबूत कितने कारगर हैं, यह जैन हवाला कांड में देखे जा चुके हैं, जिनमें लालकृष्ण आडवाणी समेत सभी नेता बरी कर दिए थे क्योंकि डायरी में दर्ज खालिस प्रविष्टियां कोई सबूत नहीं मानी जातीं.
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