पठानकोट पर फटकार

Last Updated 05 May 2016 04:45:01 AM IST

गृह मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति ने पठानकोट हमले के मामले में सुरक्षा विफलता को लेकर जो गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं, वे हर दृष्टि से विचारणीय हैं और आंख खोलने वाले हैं.


पठानकोट पर फटकार

वास्तव में हम समिति की रिपोर्ट को पठानकोट हमले का वस्तुपरक निर्मम आकलन कहेंगे. यही नहीं, इसे यदि गंभीरता से लिया जाए तो ऐसे हमलों को न केवल रोका जा सकेगा, बल्कि हमला होने के बाद बेहतर तरीके से मुकाबला किया जाना संभव होगा.

2 दिसम्बर 2015 को पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए हमले का प्रायोजक पाकिस्तान था, इसमें दो राय नहीं और समिति ने भी इसे स्वीकार किया है. आतंकवादी वहीं से आए थे, आने के पहले पूरी तैयारी की थी, यह भी सही है.

पाकिस्तान पर जांच के लिए दबाव बढ़ाना, इसके षड्यंत्रकारियों को सजा दिलाने की कोशिश करना भी बिल्कुल सही दिशा में काम करना है. किंतु दूसरी ओर यह हमें आत्मविश्लेषण को भी प्रेरित करती है कि आखिर आतंकवादी वहां तक आने और तीन दिनों तक लड़ने में सफल कैसे हो गए? समिति ने सबसे पहले इसी प्रश्न का उत्तर तलाशा है तथा पूरी सुरक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

यह तो सच है कि इस हमले की सटीक खुफिया रिपोर्ट थी. यदि रिपोर्ट थी तो फिर सुरक्षा के पर्याप्त कदम समय पूर्व क्यों नहीं उठाए गए? सबसे पहले तो सीमा पर कंटीले तार, फ्लड लाइट तथा भारी संख्या में सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तैनाती के बावजूद वे कैसे अंदर आने में सफल हुए और वह भी उतने हथियारों और गोला बारूद के साथ?

यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर हमें अपनी विफलता के लिए शर्मसार करता है. दूसरे, यदि वे आ गए तो भी उतने हथियारों के साथ वायुसेना अड्डे तक कैसे पहुंचे? आखिर पूर्व एसपी सलविंदर सिंह का अपहरण हो गया, खबर भी फैल गई थी, लेकिन पंजाब पुलिस की कोई तैयारी है, ऐसा लगा ही नहीं.

एक क्षण के लिए भी लगा कि पंजाब पुलिस उस घटना के बाद गंभीर हुई. यदि वह गंभीर हो जाती तो आतंकवादी रास्ते में ही घेरकर पकड़े या मारे जा सकते थे. समिति का यह कहना बिल्कुल सही है कि पंजाब पुलिस की भूमिका आरंभ से ही संदेहास्पद रही. निष्कर्ष यह कि पठानकोट हमला हमारी अपनी विफलताओं की ही भयावह परिणति थी.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment