लालच की आग

Last Updated 04 May 2016 04:54:12 AM IST

कहावतों में जंगल की आग का अर्थ तेजी से फैलने वाली भीषणता से ही लगाया जाता है.


लालच की आग

भारतीय शास्त्रों में भी तीन तरह की अग्नियों-दावानल यानी जंगल की आग, बड़वानल यानी समुद्र में उठने वाले ज्वार के अलावा जठराग्नि यानी पेट की भूख-को सबसे भीषण माना गया है. जठराग्नि के अलावा, ये दोनों तरह की अग्नियां प्राकृतिक घटनाएं या आपदाएं मानी जाती रही हैं.

लेकिन फिलहाल उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से धधकते पर्वतों का राज प्राकृतिक ही है, इस पर संदेह करने के पर्याप्त कारण हैं. कई हलकों में यह माना जा रहा है कि यह आग वन माफिया की करतूत है, जो लकड़ी के ठेके हासिल करने के लिए यह तरीका अपना रहा है.

यह भी कहा जा रहा है कि वन विभाग के लोगों की इसमें मिलीभगत होती है. हालांकि इन खबरों को पुष्ट करने के अभी तक कोई ठोस सुराग नहीं है पर इसके पारिस्थितिजन्य सबूत स्थानीय लोगों के अनुभवों में मौजूद हैं. ऐसे तो कानूनन वनों की कटाई पर रोक है क्योंकि देश में वन क्षेत्र लगातार तेजी से सिमटता जा रहा है. लेकिन आग में जलने के बाद वनों की सफाई का ठेका मिल सकता है.

अमूमन आग में बड़े पेड़ों का तना बचा रह जाता है, जो इमारती लकड़ी के काम आता है. और लकड़ी की मांग और कमी के मद्देनजर इससे इनकार करना मुश्किल है कि पैसा कमाने और संपत्ति हासिल करने के इस दौर में संबंधित लोग ऐसी करतूत करने से हिचकेंगे. आज लालच में जिस कदर लोग कोई नैतिक बाधा स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और सिर्फ कानून का सख्त डंडा ही उन्हें कुछ डरा पाता है,

उस दौर में इस सच्चाई पर बरबस यकीन करने को मन हो उठता है. इसलिए सरकार को इस पर जांच बैठानी चाहिए और यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि आग की असली वजहें क्या हैं? हालांकि यह सच्चाई न हो तब भी यह मानव निर्मित हादसा ही है; क्योंकि हमने बेहिसाब वनों की कटाई, कारों, हवाई जहाजों, कोयला संचालित बिजलीघरों से पर्यावरण का संतुलन इतना बिगाड़ दिया है कि धरती का तापमान बढ़ने लगा है. गर्मियां भीषण होने लगी हैं. इसलिए जंगल में आग की आशंकाएं भी बढ़ गई हैं.

यही नहीं, बड़े बांधों से पर्वतों में जलस्रोतों के मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए हैं. इससे भी पर्वतीय जंगलों की पारिस्थितिकी बदल रही है. इसके अलावा, पर्वतों की प्राकृतिक वनस्पतियों के बदले अंग्रेजों के व्यापारिक हित के लिए लगाए चीड़ के पेड़ों की भरमार होती जा रही है, जिनकी पत्तियां सबसे ज्वलनशील हैं. यानी ये लपटें हमारी लालच का ही प्रतीक हैं.



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