इस मंदिर के 'पेड़े' और आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक को अब पूरी दुनिया में मिलेगी पहचान

Last Updated 01 Apr 2024 10:38:05 AM IST

त्रिपुरा के गोमती जिले के त्रिपुरसुंदरी मंदिर के प्रसाद पेड़े और आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक 'रिगनाई पचरा' को जीआई टैग दिया गया है। आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक और इस मंदिर के 'पेड़े'


जनजातीय पोशाक 'रिगनाई पचरा', त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर के प्रसाद 'पेड़ा' को मिला जीआई टैग

260 साल से अधिक पुराना त्रिपुरसुंदरी मंदिर 51वीं शक्तिपीठ है।

त्रिपुरा के मुख्‍यमंत्री माणिक साहा ने रविवार को यह जानकारी दी।

मुख्यमंत्री ने त्रिपुरा के दो उत्पादों को जीआई टैग मिलने पर खुशी जताते हुए अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "मुझे बेहद खुशी है कि त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर का 'पेड़ा' और आदिवासी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक 'रिगनाई पचरा' को जीआई टैग दिया गया है।”

उन्होंने कहा कि दूध और चीनी से बना त्रिपुरेश्‍वरी मंदिर का पेड़ा और पोशाक 'रिगनाई पचरा' के लिए कपड़ा आदिवासियों, विशेषकर महिलाओं द्वारा हथकरघे से बुना जाता है।

प्रसिद्ध 'पेड़ा' अगरतला से 64 किमी दक्षिण में त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में त्रिपुरसुंदरी मंदिर में 'प्रसाद' के रूप में उपयोग किया जाता है।

260 साल से अधिक पुराना त्रिपुरसुंदरी मंदिर भारत की 51वीं शक्तिपीठ है और कोलकाता के कालीघाट स्थित काली मंदिर और गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर के बाद पूर्वी भारत में तीसरा ऐसा मंदिर है।

इस जगह का धार्मिक महत्व काफी अहम है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी सती का दाहिना पैर भगवान शिव के तांडव नृत्य के दौरान यहां गिरा था।
 

आईएएनएस
अगरतला


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