मानव तस्करी : शर्मसार होती मानवता पर कैसे लगे लगाम

Last Updated 05 May 2024 12:53:23 PM IST

मानव तस्करी (Human trafficking) में बल, धमकी या जबरदस्ती जैसे तरीकों का उपयोग करके व्यक्तियों को परिवहन करना, भर्ती करना, स्थानांतरित करना, आश्रय देना और प्राप्त करना शामिल हैं। इन कृत्यों और साधनों का अंतिम उद्देश्य इन व्यक्तियों का शोषण के उद्देश्य से उपयोग करना है।


मानव तस्करी

मानव तस्करी के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है। पश्चिम बंगाल मानव तस्करी का नया केंद्र बन कर उभरा है। भारत से पश्चिम एशिया, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में मानव तस्करी होती है। दुनिया भर में मानव तस्करी के पीड़ितों में एक-तिहाई बच्चे होते हैं। एक अनुमान के अनुसार पिछले एक दशक में बांग्लादेश से लगभग 5 लाख महिलाएं, लड़कियां और बच्चे अवैध रूप से भारत में लाए गए और यह संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल आज भारत का सबसे बड़ा सेक्स बाजार बनकर उभरा है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। देश भर के कोठों में देह व्यापार करने वाली जो लड़कियां रिहा कराई गई, उनमें प्रति 10 लड़कियों में से 7 उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना से लाई जाती हैं।  

समाज के सबसे कमजोर वगरे में से एक, जो तस्करी के प्रति अधिक संवेदनशील है, युवा महिलाएं हैं, और ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश समाजों में सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से महिलाओं को अवमूल्यन और अवांछित माना जाता है। उन जगहों, जहां उनका जीवन दयनीय है, से पलायन करने की इच्छा व्यक्तियों को तस्करों से संपर्क करने के लिए तैयार करती है जो शुरु आती चरणों में उन्हें बेहतर जीवन के वादे के साथ लुभाते हैं, लेकिन एक बार जब पीड़ित उनके नियंत्रण में आ जाते हैं, तो उन्हें झुकाने के लिए जबरदस्ती के उपाय लागू किए जाते हैं। अन्य कारण हैं सीमाओं की छिद्रपूर्ण प्रकृति, भ्रष्ट सरकारी अधिकारी, अंतरराष्ट्रीय संगठित आपराधिक समूहों या नेटवर्क की भागीदारी और सीमाओं को नियंत्रित करने के लिए आव्रजन और कानून प्रवर्तन अधिकारियों की सीमित क्षमता या प्रतिबद्धता।

पिछले कुछ वर्षो में तस्करी का खतरा ड्रग सिंडिकेट के बराबर एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट बन गया है। इसने पैसे और भ्रष्ट राजनेताओं की मदद से समाज में अपनी जड़ें गहरी जमा ली हैं। भारतीय कानूनी ढांचे में ठोस परिभाषाओं की कमी भी इस उद्देश्य में मदद नहीं करती है क्योंकि विभिन्न तस्कर कानूनी पण्रालियों में तकनीकी खामियों के आधार पर छूट जाते हैं। ठोस परिभाषाओं के बिना भी, कानून पर्याप्त होने चाहिए थे, लेकिन भारत में इन कानूनों के कार्यान्वयन में बहुत कुछ अधूरा रह गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मो पर निगरानी की कमी ने तस्करों के लिए अपना व्यापार जारी रखने के लिए एक नया मंच खोल दिया है।

तस्करी की समस्या पर डेटा अपर्याप्त हैं, इसलिए तस्करों के पैटर्न और कार्य तंत्र उतने स्पष्ट नहीं हैं, जितने होने चाहिए। यहां तक कि जब पीड़ितों को तस्करों से बरामद किया जाता है तो उनका पुनर्वास इस तरह से नहीं किया जाता कि वे दोबारा तस्करी का शिकार न हों। मानव तस्करी वर्तमान विश्व के सम्मुख उपस्थित कई बड़ी समस्याओं में से एक है। तमाम कोशिशों के बावजूद इसे रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है, और न केवल अल्प-विकसित तथा  विकासशील देश, बल्कि विकसित राष्ट्र भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। मानव तस्करी भारत की भी प्रमुख समस्याओं में से एक है।

प्रियंका सौरभ


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment